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बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना के ऐलान के क्या हैं मायने? समझें किसे फायदा… किसे नुकसान

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बिहार चुनाव से पहले जाति जनगणना के ऐलान के क्या हैं मायने? समझें किसे फायदा… किसे नुकसान

Caste Census in Bihar: केंद्र सरकार ने जाति जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है. बुधवार (30 अप्रैल) को कैबिनेट की बैठक के बाद इसकी जानकारी दी गई. केंद्र सरकार के इस निर्णय से विपक्ष को बड़ा झटका लगा है. क्योंकि राहुल गांधी इस मुद्दे को मिशन मोड की तरह उठाते रहे हैं. दूसरी ओर केंद्र सरकार ने ऐसे समय में इसका ऐलान किया है जब बिहार में इसी साल (2025) विधानसभा का चुनाव होना है. ऐसे में समझिए कि सरकार के इस निर्णय से बिहार विधानसभा चुनाव में क्या कुछ असर हो सकता है.

राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार पांडेय कहते हैं कि केंद्र सरकार ने पूरे देश में जातीय जनगणना कराने का ऐलान कर विपक्ष को मुद्दा विहीन कर दिया है. विपक्ष के लिए यह बड़ा मुद्दा था जिसे केंद्र सरकार ने पूरा कर दिया है. अब बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के लिए बड़ा कांटा भी साफ हो गया है. कुल मिलाकर इसका सीधा-सीधा फायदा एनडीए को होने वाला है. क्योंकि निश्चित तौर पर मांगने वाले से ज्यादा देने वाले को लोग पसंद करते हैं. विपक्ष चुनाव में जाकर यह बात जरूर कहेगा कि हमने मांग की तो पूरी हुई, लेकिन बीजेपी और जेडीयू के नेता इस बात को जरूर कहेंगे कि हमने देने का काम किया है. तो इसका फायदा सीधे तौर पर एनडीए को होगा.

पांच साल से विपक्ष बनाए हुए था मुद्दा: संतोष कुमार

इस पूरे मामले पर बिहार के एक और वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार से भी बात की गई. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का यह निर्णय देशहित के लिए अच्छा है. विपक्ष पिछले पांच सालों से इसे बड़ा मुद्दा बनाए हुए था. राहुल गांधी पूरे देश में घूम-घूमकर जातीय जनगणना करवाने की मांग कर केंद्र सरकार को घेर रहे थे. अब केंद्र सरकार के इस ऐलान से बिहार विधानसभा चुनाव में सीधा फायदा नीतीश कुमार सहित एनडीए को होने वाला है. कहा जाए तो बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने एक बड़ा हथियार छोड़ा है.

बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में जातीय सर्वे कराया था. नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे तो उसी वक्त बैठक करके यह निर्णय लिया गया था. हालांकि कुछ दिनों बाद नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल हो गए थे और उसी सरकार में जातीय सर्वे कराया गया था. तेजस्वी यादव भी इसका क्रेडिट लेते रहे हैं.

बिहार सरकार ने जो जातीय सर्वे कराया है उस रिपोर्ट के अनुसार, अति पिछड़ा वर्ग 27.12 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 19.65 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 1.68 प्रतिशत और अनारक्षित यानी सवर्ण 15.52 प्रतिशत हैं. वहीं धार्मिक आधार पर देखें तो बिहार में हिंदुओं की कुल आबादी 81.9 फीसद है जबकि मुसलमानों की आबादी 17.7 फीसद है. वहीं ईसाई की 0.05, बौद्ध की 0.08 और जैन की 0.009 फीसद आबादी है. किसी धर्म को नहीं मानने वालों की संख्या 2146 है.

अब देखना होगा कि केंद्र सरकार की ओर से कराई जा रही जातीय गणना और बिहार सरकार के जातीय सर्वे में क्या कुछ फर्क निकलकर आता है. क्योंकि जातीय सर्वे का मामला कोर्ट भी गया था और कई सवाल भी खड़े किए गए थे कि इसमें धांधली की गई है. 

यह भी पढ़ें- Caste Census: जातीय जनगणना के फैसले पर आई लालू यादव की प्रतिक्रिया, ‘हम इन संघियों को…’

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